कवि की मां
फफक कर रोने लगी भरी सभा में
दिवंगत कवि की माँ,
वह जानती थी
कि खचाखच भरे सभागार के दर्शक
आए हैं पुरस्कार-समारोह तथा
नाटक, कविता, आवृत्ति और गान के लिए
तथापि भाव विह्वल हो उठी वह
जब सभारंभ में ही
स्मरण किया गया उसके बेटे को
गुणगान हुआ उसके कवित्व का
मंच पर बुलाया गया कवि के परिवार को।
सभा को करते हुए संबोधित
कवि की एक कविता सुनाने से पूर्व
कहा कवि की माँ ने
यहाँ कितने ही बंधु हैं उसके बेटे के
आप सब भी जानते-पहचानते हैं उसे
ढूँढ़कर ले आएँ उसको मेरे पास
पता नहीं कहाँ चला गया वह
मेरा इकलौता बेटा
आप सबका प्रिय कवि।
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